…वक़्त पर काम आ रहे हैं ग़ैर,कितने काँटे गुलाब से निकले

गोंडा।असग़र गोंडवी फॉउंडेशन के तत्वावधान में एक तरही शेरी महफ़िल सभासद वली मुहम्मद मामा के आवास पर सजाई गई। जिसकी सदारत जमील आज़मी ने और निज़ामत हैदर गोंडवी ने की।
मुख्य अतिथि मुजीब सिद्दीक़ी ने भाषा और व्याकरण पर प्रकाश डालते हुए बताया कि शाइरी और कविता के लिए इनकी पूरी जानकारी होना अतिआवश्यक है। विशिष्ट अतिथियों में अनीस आरिफी (कर्नलगंज), अल्ताफ़ अंजुम (फखरपुर), अज़्म गोंडवी (कर्नलगंज) और आफाक अंजुम (फखरपुर) शामिल रहे।
नशिस्त का आगाज़ जमशेद वारसी, आतिफ गोंडवी और सुफियान मुजीब ने नात पढ़कर किया। इसके बाद सभी शाइरों ने तरही पंक्ति ” ख्वाब ताबीरे ख्वाब से निकले ” पर अपने अपने कलाम पेश किए।
जमील आज़मी ने कहा- ओढ़कर मसलिहत की चादर को, आप कब इज़्तिराब से निकले। मुजीब सिद्दीकी ने कहा- हर तरफ है हवस भरी नज़रें, हुस्न कैसे हिजाब से निकले। अनीस आरिफी ने कहा- ख्वाबे गफलत में जिंदगी गुज़री, आँख खोली न ख़्वाब से निकले। आमिल गोंडवी ने कहा- मिल गयी जो वतन को आज़ादी, रास्ते इंक़लाब से निकले। नजमी कमाल ने कहा- ज़िन्दगी एक ख्वाब की मानिंद, मौत आयी तो ख़्वाब से निकले। अज़्म गोंडवी ने कहा- उसकी हर इक चुभन क़बूल मुझे, खार वो जो गुलाब से निकले। जमशेद वारसी ने कहा- आबरू थे जो बज़्मे हस्ती की, वो भी खाना खराब से निकले। डॉ आफताब आलम ने कहा- यह उसी का करम ही है हम पर, कैसे कैसे अज़ाब से निकले। मुजीब अहमद ने कहा- देख माज़ी की गलतियाँ शायद, हल कोई अहतिसाब से निकले। साजिद गोंडवी ने कहा- मंज़िलों की तलब में हम आखिर, नींद और ख़्वाब वाब से निकले।
अल्ताफ़ अंजुम, आफाक अंजुम, सगीर उस्मानी, आतिफ गोंडवी, हैदर गोंडवी, सुफियान मुजीब, अभिषेक श्रीवास्तव, अल्हाज गोंडवी, अरबाज़ ईमानी, ईमान गोंडवी वगैरा ने भी अपने अपने तरही कलाम पेश किए।
श्रोताओं में खास तौर पर नदीम पत्रकार, फ़ैज़ बारी, मंटू काज़ी, आसिफ़ सिद्दीकी, अनस मेवातियान, लुत्फी कमाल, अदील मास्टर, कमाल अब्बास, क़दीर पहलवान, फरहान बारी, शमीम बाबू, काशिफ़, परवेज़, शारिक, असलम, सलमान, साजिद वगैरा भारी संख्या में मौजूद रहे। गोष्ठी देर रात तक चली।
अंत में सभासद वली मुहम्मद मामा ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया।